बतलाओ ना मॉ
बातें बचपन की है
मैंने जब भी कोई काम
खेलने-कूदने की हड़बड़ी में
ठीक से नहीं किया तो समझो
खूब-खूब डॉट मॉ से पड़ती होती थी
आटा उसनते कभी बेहिसाब नमक कभी
ढेर सारा पानी डाल दिया करती
फुलकियां लोई आड़ी-तिरछी हुबहू चकले पर
भूगोल का नक्शा बना दिया करती
मॉ डॉटती जोरदार झापट जड़ देती
चोटी खींचती कान मरोड़ती
भले ही वे अकेले में इसी सजा को मुझे देते-देते जो
खुद भी मेरा कान लाल देखकर गुपचुप रो-रो पड़़ती
मॉ के डर ही से सही हम बेटियॉ हर काम
सलीके से करना सीख ही लिया करती है
हम काम सलीके से करने की बचपन ही से
एक अच्छी आदत जो बनी मॉ आपकी वजह से
मेरे सलीकेदार काम की जहॉ-जहॉ भी
जब-जब भी तारीफ हो रही होती है तो मॉ
आपके हाथों कान मरोड़ने का वह दर्द मुझे
तब का तो याद रहा ना रहा अब बेहद याद आता है
आपको तो मेरी इस खुशी का अन्दाजा भी ना होगा मॉ
अपनी नन्ही बेटी को इस दौर में सलीकेदार कैसे बनाऊं र्षोर्षो
बगैर कान मरोड़े़ उसे मैं आटा उसनना लोई और
गोल-मटोल फुलकियॉ बनाना कैसे समझाऊं र्षोर्षो
मॉ बतलाओ ना उसे भी घर बनाना कैसे सिखलाऊं र्षोर्षो
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सयानी होती बेटी
सयानी होती बेटी की फ्राक जब
तंग हो रही होती है
मॉ की चिन्ताएं दिन-दूनी
बढ़ जाया करती है
रात-रात जब
बेटी की नीन्दों में सजीले
सपनें उतरते हैं
मॉ की रातें इधर-उधर
करवटें बदलते-सोचते
बीता करती है
बेटी सयानी हो तो घर के
सारे काम भले ही हल्के हो जाते हैं मॉ के लिए
चिन्ताओं का बोझाश् और बढ़ जाता है
बेटी कहीं के लिए घर से जरा
निकली ही सही
मॉं की निगाहें सीढ़ियों
दरवाजा कभी
घड़ी को लगातार तकती है
बेटी की चिन्ता में वह
पति को कभी
बेटों को लगातार टोंकती है
बेटियॉ हालांकि
जमाने के मिजाज को
अच्छी तरह जानती है समझती है
इसिलिए ममता का तिनका-तिनका
दुपट्टे की गांठ में सलामत रखे हुए
किसी भी सूरत में जरुर समय से ही
घर लौट आया करती है सयानी बेटियां ।
Friday, June 11, 2010
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